अंधेरे से डर
अंधेरे से डर


रास्तों के अंधेरे से ज्यादा
मन के अंधेरे डराते हैं,
उन्हें कृत्रिम तरीकों से उजालों
से भर सकते हैं पर मन का क्या?
जो बाते मन को अंधेरे में धकेल दें,
सारी इंसानियत को नकार दें,
उनसे बहुत डर लगता है, क्योंकि
उनका साया, अस्तित्व को डसता है।
इसलिए डर अंधेरे रास्तों से नहीं
उस सोच से है जो इस जीवन की
उजली डोर को कलिमायुक्त करता है,
जीवन को अंधकार से भरता है।
सोच बदलो, उन्नति के रास्ते खुद ही
प्रशस्त होंगे, तिमिर उन मार्गों से स्वतः
दूर होंगे, फिर न कोई डरेगा, पग आगे
आगे बढ़ेगा, सफलता का द्वार खुलेगा।