ताला चाभी
ताला चाभी
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तू ही मेरा ताला,तू ही मेरी चाभी,
सौंप दिए सारे अधिकार,लगन जब से लागी।
तुझसे शुरू होके,तुझपे खत्म होती थी,
मेरी जिंदगी की राहें,तुझसे ही तो बंधी थीं।
लगा के क्यों फिर ताला,क्या चाभी फेंक दी है?
मुझे खुद से बांध के, क्यों मेरी आज़ादी बेच दी है?
क्यों भूलता है,हर ताले की डुप्लीकेट चाभी भी बनती है।
एक बार जो लग जाये,फिर रोके नहीं रुकती है।
