मौसम प्यार का
मौसम प्यार का
उनके पेट में आग लगी थी,
चूल्हे ठंडे थे,बेबसी और बेकली थी,
हम बात प्यार की करते रहे और
वो,बेबस से हमे देखते रहे।
सूनी सूनी आंखों से, खोखली
मुस्कराहट से, दो पैसे की आस
में,सबके "मन की बात"सुनते रहे।
बातों से पेट नहीं भरे जाते,
बाबू मोशाय!उसके लिए कुछ
करना पड़ता है,खोखले वादों से
किसका भला हुआ है आजतक ?
रोटी की तस्वीर देख कर पेट तो
नहीं भरते? हां!कुछ काले अक्षरों
से सफेद पन्ने जरूर हैं रंगते।
ये मखमली हवा,रिमझिम बूंदें भी
तभी भाती हैं दिल को,जब सिर के
ऊपर छत हो,मौसम प्यार का, रोमांस का
तभी लगता है,जब पेट में दाना हो।
आप प्यार से मन की बात करते रहें
वो उसमें भी धन की बात खोजते रहे।
क्या खूब त्रासदी को सब यूं देखते रहे।
क्यों भूल जाते हो,भूखे को तो
चांद भी रोटी नजर आता है।
ये भीड़ मौसम को एंजॉय करने नहीं
दो पैसे की उम्मीद में जुड़ती है।
प्यार व्यार,भरे पेट के चोंचले हैं
जो रोटी, कपड़ा, मकान दिलाए
बस वो ही प्यार का मौसम कहलाए।