वो बचपन के दिन
वो बचपन के दिन
वो बचपन के दिन बड़े सुहाने थे
जब हम कार्टून नेटवर्क के बड़े दीवाने थे।
तब रिमोट के लड़ाई होती थी।
हर बार हर बात पे कहा सुनी होती थी।
जब देखो अपनी कुटाई होती थी।
हर अपने दिन की शुरुआत
झाड़ू खाने से शुरू होती थी।
मांँ का बेलन उठ जाता था।
सब कार्टून नेटवर्क का खुमार
उतर जाता था।
जब मम्मी के हाथ में बेलन
आ जाता था।
बचपन के दिन वो सुहाने थे।
जब पापा संग बाजार जाते थे
चॉकलेट और कुरकुरे लाते थे
चॉकलेट के लिए मल्ल युद्ध होती थी।
फिर मम्मी की चप्पल पड़ती थी
सारा दर्द हरा हो जाता था।
जब मम्मी का हरा वाला चप्पल
पीठ पे पड़ जाता था।
वो बचपन के दिन बड़े सुहाने थे
हम भी बड़े नटखट शरारती थे
जब राहुल के पैंट को पीछे से खींच के,
हम तख्ते के नीचे छुप जाते थे।
राहुल को रोता देख के हम पीछे
से भाग जाते थे
घर आने पे कुटईया होती थी।
घर आने पे झाड़ू और चप्पल से
हमारी पूजा होती थी।
जब हम बत्तीसी दिखाते थे कही
और ज्यादा चप्पल खा जाते थे
वो बचपन के दिन बड़े सुहाने थे
वो अपने भी खूब जमाने थे।
आज पापा के मम्मी के ना रहने से,
वो सुहावने दिन भी हमे फिर
से याद आने लगे थे।
