रेलगाड़ी और हमसफर
रेलगाड़ी और हमसफर
मेरे कुछ उलझें सवाल सा
तू भी बदले मिजाज सा
सफर तन्हा सा कट जाता है
जब कोई खूबसूरत हमसफर मिल जाता है
मुँह चिढ़ाती रेल की पटरिया
पीछे छूटते खेत खलियान नदिया
कितना कुछ खुशनुमा कर जाता है
रोज की ये दौड़ाधापी में
ये ट्रेन कितनो के जिंदगी जीने का वजह होती है
किसी की माँ अपने बेटे का इंतज़ार कर रही होगी तो
हो सकता किसी की पहली मुलाक़ात तो किसी की यह आखिरी मुलाक़ात होगी
बस एक ही झलक तो देखा था उसे
हस्ते हुए जुल्फों को कान पर लगाते हुए वह कितनी हसीन लग रही थी
नाम तो उसका पता नही था
लेकिन उसकी तस्वीर ना मेरे आँखों में कैद हों गई थी
ये ट्रेन भी ना कितने गांवो और शहरो को छोड़ते हुए
अपनी मंजिल की ओर बढ़ रही थी
उगते सूरज के लालिमा के बीच दौड़ती ट्रेन
वो सन्नाटो के बीच तेज़ सिटी मारती कोलाहाल करती ट्रेन बड़ा हीं सुखद अहसास देती
यह लाइफ मे आगे बढ़ने का संकेत भी देता है
वो प्लेटफार्म नम्बर 3 पे ट्रेन का आके रुकना
वो बार बार उसका मुझे देख के झुमका ठीक करना
मेरे आते ही खिड़की पे तेरा आँखे मिचना
जैसे जैसे घर करीब आता
जैसे जैसे प्लेटफॉर्म करीब आता
ख़ुशी और गम दोनों का अहसास एक साथ हो जाता
ख़ुशी इस बात की होती की घर करीब आ रहा
लेकिन वो ना जाने आगे किस प्लेटफॉर्म पे उतर जाए यह बात मुझे अन्दर ही अंदर खाई जा रही थी
सच यार उसे खो देने का डर लग रहा था
ये एक साथ खुशी और गम का
अहसास भी ना बड़ा अजीब होता है ना
स्लीपर क्लास कोच के बीच उसकी चटपटी बातें
पुदीना की चटनी और वो हसीन राते
मेरी तरफ टकटकी किये देखती उसकी भूरी आंखे
वो प्लेटफार्म देखते उसका पर्दा खींचना
वों सहमी सहमी नजरों से जुल्फों को आगे खींचना
घर जाने की खुशी किसको नहीं होती
प्लान भी बना की घर पहुंचते यहाँ जाऊंगा वहाँ जाऊंगा
खुद से पूछता रहा प्रश्न हर वक़्त
सोच रहा था ना ये हसीन वादियां ये झरने पहाड़ कितने प्यारे है
फिर जब उसकी आँखे देखता तो सारी हंसीं वादियां
ना जाने क्यू फीके से क्यूं लगने लगते
उसकी बातें मुलाकाते चोरी चोरी नजरो से देखती भूरी आँखे
काश वो मूंगफली और पुदीने कि चटनी ये ट्रेन तुम फिर से मिलोगी क्या
तभी मुझे झपकी लगी और जब मै जागा तो वह ट्रेन से जा चुकी थी
निराश था मै और हताश भी
मै खुद से प्रश्न करता रहा
एक बात बताओ ना मेरे ख्यालो की परी
जब मै फिर लौटू तो फिर से मिलोगी क्या
अब इसी उधेड़बुन मे मै पटरी पे बैठ जाता हूं
कि इसी पटरी को छूती ट्रेन फिर से तुम्हे ले गई होंगी
यार वो यादे बहुत सताती है
कितनी दफा सफर के दौरान मेंरी टकटकी नज़रे तुम्हे ढूढ़ंती रहती
लेकिन हर बार मेरी आँखे उदास हो जाती
यात्रियो के भीड़ मे वो माध्यम सी आवाज़ सबसे अलग सी थी
शायद सचमुच वो एक परी थी
जो सच मे स्वर्ग से उतरी थी
तभी मेरी नजर रेल की उन तन्हा पटरियों पर पड़ी
जो साथ तो होती थी फिर भी वो कभी ना मिल पाती