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Vishnu Saboo

Abstract Comedy Tragedy

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Vishnu Saboo

Abstract Comedy Tragedy

इम्युनिटी

इम्युनिटी

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आजकल हर किसी को अपनी।

"इम्युनिटी" की बड़ी चिंता सताने लगी है।।

कल तक जो कुछ भी गपागप खाते थे।

आजकल उनको "क्वालिटी" देखना आने लगी है।।

बड़े-बुजर्ग कह - कह के थक गए।

पर कसरत से जिन्हें नींद आने लगती थी।।

आजकल वही सब जल्दी उठ कर।

"ऑनलाइन" कसरत करने लगे हैं।।


बाजार में भी देखो जिधर भी।

हर चीज में इम्युनिटी से भरी हुई।।

क्या फल - सब्जी, क्या अनाज-दालें।

सब इम्युनिटी से है सनी हुई।।

बिस्कुट - चाय में भी इम्युनिटी।

रच - बसने में है लगी हुई।।

कल तक बिस्कुट में थी मैदा।

और चाय में कैफीन भरी हुई।।


अब तो साबुन- शेम्पू में भी।

इम्युनिटी का तड़का लगाया जाएगा।।

कपड़ें हो या फिर जूते-चप्पल।

इम्युनिटी का स्टीकर लगाया जाएगा।।

किसी को फुरसत नहीं कि इनमें।

इम्युनिटी का क्या लेना देना होगा।।

बस भेड़ चाल में चलने वालों को।

थोड़ा और मूर्ख बनाया जाएगा।।


आपदा को अवसर बनाने वालों की।

दुनियां में कोई कमी नहीं।।

इंसानियत का कत्ल करके जेबें भरने वालों की।

आंखों में कोई नमी नहीं।।

भरोसे का खून इस बाजार में पल-पल होता है।

यहाँ किसी में नरमी नहीं।।

किसी को अफसोस नहीं है ना कोई मलाल है।

इनकी नजर में ये कोई अधर्मी नहीं।


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