इंसान
इंसान
क्यों जमीन से आसमान पे जा रहा है इंसान ।
क्यों अपनी ही जमात से घबरा रहा है इंसान ।
जानवरों को काटा जाना तो आम था यहां ।
चौराहों पर बेधड़क काटा जा रहा है इंसान ।
भरोसे पर चलती है ये दुनिया ।
ऐसे हालात में किसपे यकीं करे इंसान ।
हमप्याला - हमनिवाला भी दगा दे जाते हैं ।
अपने साये से भी घबरा रहा है इंसान ।
चंद सिक्कों के लालच में देखो ।
बेच रहा वतन और अपना ईमान ।
रिश्ते- नाते सब भूल - भालकर ।
किस अंधी दौड़ में भाग रहा है इंसान ।
देकर किसी को तकलीफ कैसे मुस्कुरा लेता इंसान ।
ना रहा खौफ खुदा का बांट दिया देखो भगवान ।
हद तक गिर गया कि देखकर शर्मा रहा खुद शैतान ।
अब तो शक होता है क्या "इंसान " अब बचा है इंसान ।