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Vishnu Saboo

Abstract Drama Romance

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Vishnu Saboo

Abstract Drama Romance

कशमकश

कशमकश

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खुदगर्जी के बने है रिश्ते जो हम निभा रहे है।

तुझको मुझसे या मुझको तुझसे अब वो प्यार थोड़े ही है।


वो दौर और ही था जब समझ जाते थे बिन कहे हाल-ए-दिल।

न वो दौर है न वो जज्बात रहे अब वो इश्क का खुमार थोड़े ही है।


गुजर जाते थे पहरों एक दूजे की बाजुओं में यूँ ही बेसुध।

न वो समां न खाली वक़्त और एक दूजे पे वो इख़्तियार थोड़े ही है।


कहने को तो एक दुसरे के हो गए हम सारे फासले मिटा के।

पहले की सी शोखी बेबाकी भरे शिकवों का गुबार अब थोड़े ही है।


कभी वक़्त हो तो बन जाओ फिर वही पुरानी माशूका मेरी।

पहले जैसे किसी से इजाजत लेने की अब दरकार थोड़े ही है।


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