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Vishnu Saboo

Abstract Tragedy Inspirational

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Vishnu Saboo

Abstract Tragedy Inspirational

मेरे अपने

मेरे अपने

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कतरा-कतरा करके मैंने,

भर ली अपनी तिजोरियां खूब

वक़्त उन्हीं को ना दे पाया,

जिनके लिए की ये सारी दौड़-धूप


ना देखा बच्चों का बचपन

ना बीवी की खूबसूरती

ना सुनी बेटी की खिलखिलाहट

ना दूर कर पाया बेटे की शिकायत


नाम और दौलत खूब कमाया

पर "अपनों" का साथ गंवाया

पैसे वाले रिश्तेदार बहुत थे

जरूरत पर कोई काम ना आया


एक भीड़ से घिरा रहा सदा

जिसने आंखों पर डाला पर्दा

उस घेरे को ही अपना माना

"अपनों" को कर दिया खफा


बस एक अंधी लालसा में ,

अकेले ही दौड़ता रहा ताउम्र

अब तन्हा रह गया हूँ ,

तो खुद को कैसे दूँ सब्र


"सब" पाकर भी गरीब हूँ

 मैं कैसा एक फ़रेबी हूँ

क्या फायदा बेहिसाब दौलत का

जब अपनों के लिए अजनबी हूँ।



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