बेबसी
बेबसी
एक अरसा हुआ बैठे है घर में
जाने कब ये माहौल ठीक होगा
मचल रहा है मन बाहर जाने को
जाने कब बाहर जाने को मिलेगा
खुल - खुल कर बंद हो जाते है
ये बाजार और काम - धंधे
दहशत से लोग जाते नहीं बाहर
बाजार पड़े है कितने मंदे
पहले से ये ऑनलाइन वालों ने
बाजार सुस्त थे करे
अब महामारी ने गला घोंटा है
गरीब अपना पेट कैसे भरे
एक दो तीन .. उफ्फ कितनी लहरें आएगी
चालू हुआ जो सिलसिला कब ये थम पाएगी
आम आदमी की जिंदगी कब पटरी पे आएगी
बीमारी ने ना मारा अगर भूख जरूर मार जाएगी।