सत्य की परिभाषा
सत्य की परिभाषा
पूरी दुनिया करती हैं सत्य का उल्लेख।
हर किताब, हर कथन में सत्य के वैभव का सुलेख।
सत्य का आधार हैं जीवन की साख,
जो इसे अपनाता उसके रिश्ते हो जाते हैं खाख।।
सत्य का करतब सब नहीं समझ पाते।
इस जालिम दुनिया से लड़ते- लड़ते वो ख़ुद हार जाते।
आज सच्चाई को हिनता और झूठे को पूजनीय मानते हैं।
हकीकत यह है कि इस बेहयाई भरी दुनिया
सत्य सुनने से घबराते हैं।
यदि सत्य की जीत होती,
तो क्या दुनिया में इतनी दरिंदगी बढ़ती।
तो क्या किसी महिला का जबरन गर्भपात होता।
तो क्या किसी बलात्कारी को नाबालिग कहकर
सजा मुक्त कर दिया जाता।
तो क्या किसी पीड़िता को बदनामी के खौफ से
आत्महत्या अपनाना पड़ता।
तो क्या कोई गरीब को भूख और प्यास से
तड़प कर मरना पड़ता।
तो क्या देश की सियासत मैं भ्रष्टाचार का
आलम इतना बढ़ता।
तो क्या मनुष्य के मन में भेदभाव की गंदगी फैलती।
इस कलयुग दुनिया में सत्य का संरक्षक कोई नहीं बनता,
सत्य की सिद्धि के लिए कोई नहीं लड़ता।।
