हरियाली से कंक्रीट तक
हरियाली से कंक्रीट तक
प्रकृति के बीच में
सबके घर आंगन थे
प्राण वायु बहती थी
पेड़ों के छाजन थे,
धीरे-धीरे पेड़ों को काटकर
हम सुविधा संपन्न हुए
भूल भविष्य के बारे में
हम ज़्यादा कृतघ्न हुए,
इतना पढ़ लिखकर भी
असली ज्ञान नहीं ले पाए
कुदरत के अनमोल तोहफों को
जानबूझ के नष्ट कर आए,
सजाना था हरियाली से अपनी धरा को
हमने बस अपने घर सजाए
हमें जंगल बनाने थे पेड़ो से
हमने कंक्रीट के जंगल बनाए।