दो लाइन की कविताएं
दो लाइन की कविताएं
क्या कहें कि जख्म कितने गहरे हैं उसे
बहुत ज़ोर का हँसती है हँस के दिखाने के लिए
इतने बेखौफ कैसे हो मियाँ
जो ज़रा हाल पूछ ले, दिल के सारे राज़ कह जाते हो
हमारी उर्दू में खयाल-ओ-ख्वाब का अकसर ज़िक्र रहा
आज़माइश के परहेज़गार, आरज़ू के सफ़्हात जोड़ते रहे।
हसद उनसे जो इमारत में महल समंदर में मौसीक़ी तस्वीर में खुदा तलाश लेते हैं
हमारी चश्म में तो फूलों के रंग तारों की चमक इंसां की इंसानियत भी फीके उतर आए
अज़्बर कर ली तेरे ज़हन-ओ-दिल की तमाम हरकत इश्क़ में ये इल्ज़ाम आया
हाथ बढ़ा दिया तेरे हाथ थामने की ज़रूरत से पहले इल्हाम आया

