उम्र
उम्र
कभी कुछ अनुभव ऐसे आज़मा गए
कि लगा सौ उम्र बढ़ गईं
कभी कोई बचकानी नादानी ऐसी कर गए
कि लगा बड़े ही नहीं हुए
मा बाप के चहरों में कदमों में देखी थकान
तो लगा हमारी भी उम्र ढल रही
कस के जकड़ लें उनकी बाहों में वक्त
उनका मासूम बच्चा ही रह जाएँ
बार-हा लौटे एक अज़ीज़ को कह कर अलविदा
तो लगा एक उम्र खत्म हो गई
फिर नये अजनबियों को अपना लिया
और नया फ़स्ल शुरू हो गया
एक उम्र हिचकिचाने में लग गई
किसी से कुछ कहा नहीं
एक उम्र समझाने में लग गई
ज्यादा किसी ने सुना नहीं
और एक उम्र खुद की खोज में जा रही है
धीरे धीरे ज़ाहिर हो रही है
कभी अपना पूरा जीना सौ उम्र का काम
लगा एक उम्र काफी नहीं
या फिर जब गिरेगा वो परदा धवल
रोशनी आखिरी चमक होगी उम्र की।