भूख...!!!
भूख...!!!
ये आग कब बुझेगी,
जो इस लाचार पेट में लगी है...???
एक तरफ ज़िन्दगी की चीख,
तो दूसरी तरफ महत्वाकांक्षा की
व्यर्थ उड़ान...!
वो जो गिरा हिम्मत का पारा,
और कैसे कोई सपना देखे...?
इस कदर बेबस तनहाइयाँ
इंसान को तकलीफ़ देती है
कि किसी के लाख चाहने भर से
कहाँ अपनी तक़दीर-ए-ज़िन्दगी बदलती है!!!
यूँ भूखा पेट गरीब करे भी तो,
क्या करे ?
जब तक नहीं होगा हासिल खुशी,
तब तक कोई बन न पाएगा
इस दुनिया के काबिल।
