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Kavita Sharrma

Tragedy

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Kavita Sharrma

Tragedy

गांव/शहर

गांव/शहर

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हरे भरे वृक्षों से भरा 

गांव हुआ करता था

पक्षियों के कलरव से

चहका कभी करता था

आते जाते राहों पर

आवाजें खनका करती थीं

पानी भरने नदी किनारे

भीड़ रहा करती थी

सब दरवाजे घरों के

सदा खुले रहते थे

सबके स्वागत के लिए

घर में भरपूर व्यंजन रहते थे

धीरे धीरे गांव की जगह

ली है जब से शहरों ने

जंगल कटते जा रहे हैं

ले ली जगह अब

कंक्रीट के जंगलों ने

दिन रात की भागदौड़ में

आदमी खुद को भूल रहा है

झूठी शान -दिखावे की

जिंदगी मानो जी रहा

पैसा है भरपूर फिर भी

खुशी है बिल्कुल गायब

गांव में ही था असली जीवन

शहरों में केवल है दिखावे का जीवन



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