बचपन
बचपन
सूने रहने लगे हैं बगीचे बच्चों बिन,
गुम होने लगे हैं गेंद खेलने वाले दिन।
बगीचों की रौनक कम होने लगी,
बच्चों की खिलखिलाहट गुम होने लगी।
बच्चे मोबाइल पर खेलने लगे हैं,
बच्चे कमरों में बंद रहने लगे हैं।
बच्चे संवाद हीन हो रहे हैं,
बच्चे मासूमियत खो रहे हैं।
बुजुर्गो का साया सर पर नहीं रहा,
बचपन अब पहले सा नहीं रहा।