फिर क्यों?
फिर क्यों?
वो इश्क का फलसफा मजहब के लफ्जों से सुनाते हैं,
फिर क्यों मंदिर मस्जिद एक ही पत्थर से बनाते हैं।
वो हिजाब को लिहाज, बेनकाब को बेहया बताते हैं,
फिर क्यों मंदिर मस्जिद एक ही पत्थर से बनाते हैं।
वो उर्दू को परदेसी, हिंदी को स्वदेशी समझते हैं,
फिर क्यों मंदिर मस्जिद एक ही पत्थर से बनाते हैं।
वो कबीर और गालिब को जुदा ठहराते हैं,
फिर क्यों मंदिर मस्जिद एक ही पत्थर से बनाते हैं।
वो तिरंगे के रंगो को अलग अलग दिखाते हैं,
फिर क्यों मंदिर मस्जिद एक ही पत्थर से बनाते हैं।।