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Rishab K.

Others

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Rishab K.

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मुकम्मल।

मुकम्मल।

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तुम्हारा छलना लाज़मी था 

क्योंकि मेरा बदलना तय,


तुम झूठ नहीं बनते

तो मैं सच कैसे बन पाती,


भावनाओं को शब्द देने थे 

तुमने शब्दों पर भावनाएं थोप दी ,


तुम्हारा पलायन लाज़मी था

क्योंकि मेरा ठहरना तय,


तुम शब्द पढ़कर भी अधूरे रहे

 मैं तुम्हे जीते हुए पूरी हो गई,


तुम्हारा कैद होना लाज़मी था 

क्योंकि मेरा रिहा होना तय ,


तुम गुमराह नही करते

तो मैं सतर्क कैसे हो पाती ,


 तुम्हारा कल मे रहना लाज़मी था 

क्योंकि मेरा आज में रहना तय,


सुनो जहां भी रहना मुकम्मल रहना।



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