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Rishab K.

Abstract Inspirational

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Rishab K.

Abstract Inspirational

शमशीर।

शमशीर।

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खून में उबाल है, सांस में बवाल है,

न झुका , न झुकेगा ये कपाल है।

 शत्रु के नयन में क्रोध, शत्रु के अधर में बोध

शत्रु के मानस में ये सवाल है।।

बेह चुका है सारा रक्त, अस्थियां हैं फिर भी सख्त, जिव्हा पर गुरुर का कराल है।

यह नहीं आम, इसका कोई है न दाम,

ये तो देश भक्ति की ही मिसाल है।।

बांध के रखे हैं हाथ, अंकुशित है इसके लात,

फिर भी भयभीत शत्रु जात है।

पहली बार ऐसी बात, देख रहा कायनात,

मुगलों की असली ये औकात है।।

 सारे नख उपाट कर, धमनियों को काट कर,

आंखों को निकाल के शहीद किया।

फिर समक्ष खड़ा हुआ, जैसे श्वान पग पे पड़ा हुआ, आस्था बदलने की जिद्द किया।।

 बोला छोड़ दूंगा सब, फिर मिलेगा मौका कब

 आ जाओ इस तरफ के, में निस्तार दूं,

धर्म की ही बात है, अल्लाह की ये सौगात है

 कुबूल लो, के जिंदगी सवार दूं।

हंस पड़े फिर शंभू छावा, क्या कहूं में तुझको बाबा निरर्थ कितना तेरा ये प्रस्ताव है,

धर्म के इस जंग में, भगवे के ही रंग में

लिपटा हुआ मेरा ये आत्म जात है।

फिर भी तू ये कह रहा, धिक्कार क्यों ये सह रहा

जब जनता मेरे मन की बात है।।

मृत्यु है स्वीकार मुझे, इस्लाम मुबारक हो तुझे,

में सदैव सनातन आभा हूं।

इतना याद रख औरंग, ये मिट्टी का है एक रंग

और शिवराय का में छावा हूं।।

रक्त सारे बह चुके, शीश फिर भी न झुके

 ये मेरे धर्म ही का मेरा तो प्रभाव है।।

शौर्य जिसके सांस में, बजरंग हैं विश्वास में,

औरंग क्या हराएगा उस वीर को।

 मारने चला था जिन्हें, अमर कर दिया उन्हें,

 नमन है उस मराठा शमशीर को।।    


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