STORYMIRROR

Sunil Kumar

Abstract

4  

Sunil Kumar

Abstract

रोटी की कीमत

रोटी की कीमत

1 min
288

एक रोटी की कीमत हम क्या तुम्हें बताएं

रोटी की चाह में इंसान दर-दर ठोकरें खाये।


ये दो जून की रोटी ही घर-द्वार छुड़वाए

ये रोटी ही तो पापी पेट की आग बुझाए

एक रोटी की कीमत हम क्या तुम्हें बताएं।


ये रोटी ही तो मुरझाए चेहरों की हंसी लौटाए

गरीब हो या अमीर रोटी बिन कोई न रह पाए

एक रोटी की कीमत हम क्या तुम्हें बताएं। 


ये रोटी ही तो भूखे को आत्मसुख पहुंचाए

रोटी ही किसी को मीत किसी को दुश्मन बनाए

एक रोटी की कीमत हम क्या तुम्हें बताएं।


ये रोटी इंसान से न जाने क्या-क्या काम कराए

एक रोटी की कीमत हम क्या तुम्हें बताएं।


 



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract