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Rishab K.

Abstract Drama Classics

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Rishab K.

Abstract Drama Classics

इल्तिज़ा

इल्तिज़ा

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जहांँपनाह!

जिन्हें फ़रमान हुआ है

संगसार का


उनका बलात्कार हुआ है

आलीजाह!


बेटियांँ हैं वे आपकी


सुल्तान को 

बाप की जगह रखता है

कानून मुल्क़ का


और बलात्कारी

दरबारे ख़ास में

हुज़ूर की पनाह में हैं


गुनहगार वे नहीं

जो सीखचों के पीछे 

या ज़मीन के नीचे हैं


दरअसल

जो आपके बगलग़ीर हैं

आपके प्यारे हैं

वे ही इन्सानियत के हत्यारे हैं


पवित्र ग्रंथों के ढेर पर

बीट करते

रंग-बिरंगे परिंदे

ख़ुदा के बंदे नहीं


इन्सानी पैरहन में

वहशी दरिंदे हैं

जिल्लेइलाही!


आपने जिस क़दर

इज़्ज़त बख़्शी है 

झूठ को

जितनी अहमियत दी है

फूट को

जितनी आज़ादी दी है

लूट को


उसका कोई हिसाब नहीं


आपकी जम्हूरियत का

हुज़ूरे आला

फ़िलहाल 

कोई जवाब नहीं !


यदि जवाब है

तो ज़रूर दीजिएगा 

सारा मुल्क़ मुंतज़िर है

आलमपनाह !


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