मौत की प्यास
मौत की प्यास
मौत की बढ़ती जाती प्यास।
रौंद रही है मृत्यु चरण से
काँप उठा यह विश्व मरण से,
किया क्रूर, निर्बन्ध मौत ने
जीवन का उपहास।
मौत की बढ़ती जाती प्यास।
मानवता की उठी आह है
मरघट जागा, करुण दाह है,
कफन लिए है खड़ी जिन्दगी
कौन बँधाए आस!
मौत की बढ़ती जाती प्यास।
कैसी विपदा आयी जग में
धार गरल की बहती रग में,
हो जाने को दफन धरा में
चढ़ी लाश-पर - लाश।
मौत की बढ़ती जाती प्यास।
रुका समय का रथ अनजाने
लगी प्रकृति है शूल उगाने,
अश्रुबिन्दु अम्बर टपकाता
धरणी पड़ी उदास।
मौत की बढ़ती जाती प्यास।