धूल ही चंदन है
धूल ही चंदन है
कण-कण में बिखरा है सुवास
लघु-जीवन की तू दिव्य - प्यास
किरणें छू करतीं नित्य लास।
जन्मभूमि- जननी तेरा अभिनन्दन है।
धूल ही चंदन है।
तेरे अंचल की मृदुल - छाँव
ममता ले तेरी बढ़े पाँव
पाया तुझसे है ठौर - ठाँव।
हरती जीवन-संताप, विश्व का क्रंदन है।
धूल ही चंदन है।
बहता सुखमय शीतल - समीर
संतप्त दिशाएँ चीर - चीर
मन का उड़ता फिर मुदित कीर।
भर जाता हर्षोल्लास, चतुर्दिक रंजन है।
धूल ही चंदन है।
हारे को अंक अभय देती
बेसुध - जीवन को लय देती
रेतों को निर्झर पय देती।
संसृति के दृग का तू मंगल अंजन है।
धूल ही चंदन है।