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Anil Mishra Prahari

Abstract

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Anil Mishra Prahari

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मां

मां

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गिरने के पहले ही  मुझे  थाम  लेती  है 

माँ,  मेरी   बलाएँ   तमाम    लेती     है। 

दुनिया ने नकारा मुझे  कहकर  आवारा 

वह शरीफों में अक्सर मेरा नाम लेती है। 

सुबह से शाम तक जो बहाती  है  पसीने 

घर के लिए खुद से कितना काम लेती है। 

उसने कभी जिया ही  नहीं  अपने  लिए 

इन एहसानों का नहीं माँ दाम  लेती   है। 

अब सिमटकर रह गयी है इक लकीर-सी

सिर्फ दवाएँ  ही माँ सुबह - शाम लेती है। 

a m prahari 


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