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Bindiya rani Thakur

Tragedy

3  

Bindiya rani Thakur

Tragedy

बेबस आँखें

बेबस आँखें

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बेबस आँखें सदैव बाट जोहती हैं

कब आएगा मेरा लाल?यही सवाल पूछतीं हैं ?


उसको हमने शहर में कमाने के लिए भेजा था , 

हमारे बुढ़ापे का वही तो एकलौता सहारा था।


शहर की जहरीले असर में वो भी आ गया,

मात-पिता को भूल कर चकाचौंध में खो गया ।


इस उमर में काम किया भी नहीं जाता है ,

इस बूढ़े जिस्म का बोझ उठाए नहीं उठता है।


काश हमारी औलाद को सद्बुबुद्धि आ जाए,

और उसे बूढ़े माँ-बाप का प्यार याद आ जाए।



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