बेबस आँखें
बेबस आँखें
बेबस आँखें सदैव बाट जोहती हैं
कब आएगा मेरा लाल?यही सवाल पूछतीं हैं ?
उसको हमने शहर में कमाने के लिए भेजा था ,
हमारे बुढ़ापे का वही तो एकलौता सहारा था।
शहर की जहरीले असर में वो भी आ गया,
मात-पिता को भूल कर चकाचौंध में खो गया ।
इस उमर में काम किया भी नहीं जाता है ,
इस बूढ़े जिस्म का बोझ उठाए नहीं उठता है।
काश हमारी औलाद को सद्बुबुद्धि आ जाए,
और उसे बूढ़े माँ-बाप का प्यार याद आ जाए।
