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Bindiya rani Thakur

Tragedy

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Bindiya rani Thakur

Tragedy

रिसते जख्म

रिसते जख्म

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हर बार सूली पर चढ़ाया मुझको,

 बात- बेबात पर रूलाया मुझको 


अनजान सफ़र में उठ गए कदम, 

बेवजह राह से भटकाया मुझको 


सही नहीं होते फैसले तुम्हारे भी,

हमेशा समझौतों में डाला मुझको 


काँच का घरौंदा बचाना चाहा था 

चुभती रहीं किर्चें बार-बार मुझको 


दर्द-ए-दिल किसको सुनाने जाते 

जख्मी कर मरहम लगाते मुझको।


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