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Manu Paliwal

Tragedy

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Manu Paliwal

Tragedy

राख

राख

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वो जो मैं था वो तो राख हो गया,

अब तो बात इतनी सी है कि है,

कि कोई पुकार ले तो कह दूं कि मैं भी था,

कहां कुछ समझ सकता है कोई,


वो तो कोई बात बिगड़ी होगी शायद,

जो तुम्हें अब समझना पड़ रहा है,

उस राख में ढूढते अवशेष हैं मेरे,

कभी देखते क्या शेष था उससे पहले,


बहुत रोए हुए लगते हो आँखों से,

तुम्हारी आंखों ने क्या क्या देखा है,

बंद दरवाजों से जो देख पाता कभी,

वो राख होकर मिल जायेगा हर जगह।


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