अकेली
अकेली
कभी अकेली होती हो तो भी क्या मुस्कराती हो,
या बस मुझे देख कर ही यूँ खिलखिलाती हो,
बहुत चाहा की एकबार कह दूँ अब थक गयी होगी,
लेकिन चमक तुम्हारी आँखों की अक्सर रोक देती है,
कभी तो सोचती होगी क्या मिला खुद को भुल कर,
क्यों घुंघट ओढ़ा है और कितना छुपाओगी आँखों को,
आंखें आज भी देखती है वही सपने जो अब तुम ढूंढ रही हो,
मैं भी कहाँ कह सका वो जो तुम शायद कहना था मुझे,
और वो सब कहता रहा जो शायद नहीं कहना था मुझे,
तुम्हारे होने की जिद ने तुम्हेँ कितना चुप कर दिया है,
क्या होगा अगर एकबार फिर तुम तुम हो जाओ तो,
चलना तो साथ ही है नहीं अब कोई बंधन कहाँ है,
बस इंतजार है शायद साथ बैठ कर भी हंस ले कभी।