यूँ ही कभी - कभी
यूँ ही कभी - कभी
यूँ ही कभी - कभी, मैं तुझे जगा देती हूँ, दबे एहसास फिर से, थोड़े सहला देती हूँ।
तेरा जवाब आये, या फिर ना आये, अपने होने का एहसास, तुझे दिला देती हूँ।
जानती हूँ तू देख के, मुँह ना मोड़ पायेगा, थोड़ी सी तड़प मेरी, अपने अंदर भी पायेगा।
यूँ ही कभी - कभी, मैं तुझे जगा देती हूँ, दबे एहसास फिर से, थोड़े सहला देती हूँ।
जब आग बराबर थी, दर्द क्यूँ रखें अकेला ? कभी तेरा दर्द भी, मैं दबा देती हूँ।
साथ ना मिला ना सही, दरवाजे अब भी हैं खुले, शरारत में अक्सर उन्हें, खटखटा देती हूँ।
यूँ ही कभी - कभी, मैं तुझे जगा देती हूँ, दबे एहसास फिर से, थोड़े सहला देती हूँ।

