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Neelam Sharma

Romance

4  

Neelam Sharma

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मैं और तुम साइकिल के दो पहिए से....।

मैं और तुम साइकिल के दो पहिए से....।

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चल ही रहे हैं दोनों साथ साथ

जीवन डगर की गलियों में।

जीवन संचार की परस्पर व्यवहार की

हवा भरी है हम पहियों में।

लेकिन तुम हो आगे का पहिया

जो स्वच्छंद उन्मुक्त सा उड़ता है।

और मैं हूं पीछे का पहिया

जो अक्सर चैन उतरने पर रुकता है।

तुम तो निकल भी जाते हो हमदम

बारिश में कीचड़ भरे गहरे गड्ढों से

लेकिन मैं पीछे धस जाती गढमढ गढमढ

कर गहरे पाताली गड्ढों में।

कभी अगर कम होती हवा

तो होती है पहिए पीछे वाले की।

क्योंकि हाथ तुम्हारे हमदम लगी है

चाबी गृहस्थ किस्मत के ताले की।

मैं नदिया तुममें आ मिलती

तुम खारा पानी सागर का

थाम सकूँ जो जल को तेरे

थाम लिया संग गागर का।

जब भी हवा हुई कम हमदम

मैंने स्व श्वास को फूका है।

बेशक बिलख बिलख रोई मैं

बेशक हर पल दिल भी हूका है।



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