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Devendraa Kumar mishra

Tragedy

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Devendraa Kumar mishra

Tragedy

नल के छल

नल के छल

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बेशर्मी की दुनियां में चुल्लू भर पानी भी न मिला डूब मरने के लिए 

शहर के नलों का भी बस कमाल है 

नल तो हैं हर जगह 

मगर पानी का अकाल है 

पानी की कमी से दूध तो शुद्ध मिला 

मगर पानी न मिलने का रहा गिला 

आखिर जल ही जीवन है 

आजकल तो पानी टू इन वन है 

पीने के काम आता है और डूबकर मरने के काम आता है 

पानी भी आजकल किस्मत से मिलता है 

ठीक वैसे ही जैसे किसी अमीर के कुत्ते को दूध, मांस और गरीब का बेटा भूखा पलता है 

एक ओर साहब का बगीचा 

घंटों पानी से सींचा जाता है 

दूसरी ओर पीने के लिए पानी की कमी है 

पढा है इस धरती पर पानी ज्यादा, धरती की कमी है 

फिर भी पीने के लिए पानी नहीं है 

ये बात पूर्णतः सही है 

जनसंख्या वृद्धि किसी मक्कार महाजन की बही है 

इस देश में गंगा बहती है, जमुना बहती है 

बहती हैं नदियां अपार 

पीने को फिर भी नहीं है पानी 

नल पड़े हैं बेकार 

जो आते भी हैं नल तो ठीक उसी तरह चले जाते हैं 

जैसे छोटे स्टेशन पर गाड़ियां दो चार मिनिट रुककर चली जाती है. 



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