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Devendraa Kumar mishra

Abstract

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Devendraa Kumar mishra

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प्रजा

प्रजा

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प्रजातंत्र जब भीड़ में बदल जाए 

भीड़ में जब भगदड़ मच जाए 

तब प्रजा का तंत्र हिल जाता है 

आदमी का विश्वास उठ जाता है 


और फिर दल, संगठन, गिरोह बन जाते हैं 

चारों खंबे ध्वस्त हो जाते हैं 

कोशिश होनी चाहिए कि भीड़ न बन पाये 

जनता का बहुत तेल न निकाला जाए 

बरदाश्त की एक हद होती है 


इसका ध्यान तंत्र द्वारा रखा जाए 

कंट्रोल नहीं, संतुष्ट करने का भाव रखा जाए 

जाति, धर्म नहीं जनतन्त्र का भाव रखा जाए 

जनता को भीड़ बनने से बचाया जाए 

उनके विश्वास को मजबूत किया जाए 


अन्यथा भीड़ बनी जनता कभी लाल किले पर चढती है 

कभी पूरा शहर जाम करती है 

कभी राजधानी में ट्रैक्टर चलाती है 

ऐसा मौका ही न आने पाए 

अनदेखा मत करो 

तुरंत कोई निर्णय लो 


बहुत देर से लिया गया निर्णय बहुत नुकसान करता है. 

देखने वालों की हिम्मत जवाब दे जाती है 

अच्छा है कि उपाय, समाधान किया जाए 

और प्रजा को भीड़ बनने से बचाया जाए।


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