बेटियां
बेटियां
जात-पात का भेद अब नहीं दाने- दाने में मिलती है
यहां अब स्त्रियां लड़कों से कंधे से कंधे मिलाकर चलती है,
फिर भी कहीं बेटियों को पंख फैलाने का अवसर नहीं मिल पाती है,
क्यों उनके सपनों का आखिर गला घोट दी जाती है।
अब स्त्रियां अंधेरे में भी निडर होकर चल पाती है,
पर न जाने क्यों कुछ अंधेरे में ही खो जाती है।
जिसने बोलना भी न सीखा, उसे लोग चीख भरे दर्द दे जाते है,
न जाने क्यों लोग हर उम्र को अपना शिकार बनाते है।
परिवार का सहारा बन घर की जिम्मेदारी उठाती है,
पर अभी भी बेटियां पिता पर बोझ क्यों कहलाती है।
बेटी, मां, बहन, बहु हर किरदार ईमानदारी से निभाती है।
फिर न जानें क्यों अपने ही घर पर पराई कहलाती है।