ख़ामोश ज़ख्म..
ख़ामोश ज़ख्म..
खामोशियां चुप नहीं है
वो बेजुबान भी नहीं है
कभी नश्तर चुभोती है
लफ़्ज़ों को तलाशती है।
ख़ामोशी जुबां में होती है
आंखें सब बयां करती है
जिंदगी एहसान करती है
बेबसी परवान चढ़ती है।
बेचैन दिल सिसकते है
ख़ामोश ज़ख्म चीखते है
जज़्बात फिर तड़फते है
वीराने में हंसते रोते हैं।
