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Preeti Sharma "ASEEM"

Abstract

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Preeti Sharma "ASEEM"

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उदास बसंत

उदास बसंत

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बसंत तुम.... क्यों 

उदास हो?

किस सोच में ....हो?


कोहरे की लोई ,

उतारी ही नहीं। 


जिंदगी की हकीकतों से ,

क्या............ 

तुम भी

परेशान हो। 


बसंत तुम क्यों उदास हो ?

जिंदगी दौड़ रही है ।


एक उदासी -सी ,

हर चेहरे को घूर रही है ।


अपने अस्तित्व को ,

बचाने में हर जिंदगी ,

मर-मर के यहां घूम रही है ।


बसंत तुम क्यों उदास हो

किस सोच में हो?


खुशियां बे -रंग हुई है ।

अपनों को देखकर ,

अपनों के एहसासों से दंग हुई है।


किन के लिए ,

तुम फूल खिलाते।

हंस -हंस के ,

सुगंधित हवा संग गाते।


रंगों से सजी ,

बसंत बहार को ,

घर -घर के आंगन में लाते।


बसंत तुम क्यों उदास हो

किस सोच में हो?

जिंदगी की हकीकत से ,

क्या तुम भी परेशान हो?



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