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Prachi V Joshi

Abstract Inspirational

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Prachi V Joshi

Abstract Inspirational

और बहती है मेरे में तू...

और बहती है मेरे में तू...

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भगीरथ ने बहाई गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर।

और बहती है मेरे में तू।


कहाँ से आती है तू पता नहीं जैसे सरस्वती का पता नहीं।

यूं ही समंदर को पीछे छोड़ कर मेरे में यूं बहती रहती है।


ऐसा क्या पाती है तू मुझ में लेकिन मेरी प्यास बुझती है तू।

तू किस दिव्य लोक की प्रेरणा है और क्यों मुझे बहलाती है।


कठिनाइयों में अक्सर मैं तुझे मेरे पास पाती हूं

जैसे कि तू मेरी मां हो।


ओ प्यारी कविता ओ मेरी कविता

कितनी तड़पन है तुझ में ऐसे क्यों

उतर के आती है तू मेरे मस्तिष्क में।


क्या पिछले जन्मो में हम थे लंगोटी यार

की तू है मेरी अंतरात्मा की आवाज।


मां है, यार है कि आवाज है क्या है तू 

ओ मेरी कविता गंगा से बिल्कुल कम नहीं तू।


मेरे में है तू और मैं हूं तुझ में

भले मैंने तुझे आकार दिया है

लेकिन मेरी मां ही है तू।



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