तुम मर्द हो
तुम मर्द हो
एक लड़का होना भी आसान नहीं,
जरा सा रो दिया तो लोग मर्दानगी पर सवाल उठा लेते,
जरा सा हाथ घर के कामों में बटाँ लिया तो लोग अलग अलग भाषाओं से पुकारने लगते,
जरा सा अपनी दोस्त, गर्ल फ्रेंड, पत्नी, बहन, माँ से घुल मिल उनसे हाल जान लिया तो लोग मेहरा(औरतों में घुसा हुआ) समझनें लगते,
गानें, नाचनें, खाना बनानें या आर्ट में रुचि ले ली तो लोग मर्द और औरत की सीमा रेखा खींचने लगते,
अपने बात को अपने जस्बात अपने भाव को हर वक़्त बगल वाले काका या चाचा, पापा जैसें मर्दों के टोकनें पर छिपानें पड़ते,
यह लोग मर्द को आदमी बनानें से हैं डरते,
ये रीति रिवाज संस्कृति के बोझ का हिस्सा भी लड़कों पर लाद दिया जाता मगर चुपके से कानों में एक आवाज आती shuuuu तुम मर्द हो......
