मेरी होली का रंग सिर्फ लाल
मेरी होली का रंग सिर्फ लाल
कोई गुलाबी, कोई नीली, कोई पीली है,
यहां सबने होली खेल रखी है।
पर देखो! वह कोने में शांत सी खड़ी है,
शायद आज उसकी बारी आई है।
कद में छोटी, रंग में गोरी, वह तो एक किशोरी है
आंखों में उत्साह भरे, लाल कुर्ती में वो खड़ी है।
सखी-सहेली बुलाती उसे खेलने के लिए रंगों से,
'मेरी होली सिर्फ लाल रंग की' कहती वह धीरे से।
किशोरी से युवती बनी, अब विवाह की घड़ी पास आई।
मांग में भरी गई सिंदूर लाल रंग की और वह विवाहित कहलाई।
देखो फिर से होली आई, उसकी आंखों में उत्साह जगाई।
पति ने लगाया चेहरे पर रंग लाल, और वह थोड़ा लजाई।
फिर होकर कामों में व्यस्त.. वह होली खेल ना पाई।
साल बदला, समय बदला और बदला उसके जीवन का रंग।
इस होली, वह कमरे में बैठी है अपने लाल के संग।
बन रहे पकवान, आ रहें मेहमान, कह रहें सब
"जीवन तुम्हारा हो गया खुशहाल
क्योंकि आ गया है जीवन में तेरा लाल" ।
उमंगों में डूब कर होली खेलने की इच्छाएं
उसकी बन गई एक आस, खुद से कहती वह
"क्यों मेरी होली का रंग है सिर्फ लाल"...!
