गैर ना समझना हमें
गैर ना समझना हमें
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अब कहां वो वक्त जो कल साथ गुजारा करते।
एक दूजे बिना अधूरे और एक दूजे पर मरते।।
क्यों दोष दूजे को दे एक बार मन में लेते झांक।
जितने सुख दुःख साझा होते उतने लेते बांट।।
क्यों समझते हो गैर किसी को नहीं है वो पराए।
जब बारी थी हमारी,राज दिल के नहीं बताए।।
हक मेरा भी उतना जितना अपना समझते हो।
गैर ना समझना हमें जब अपना समझते हो।।