STORYMIRROR

Deepti Tiwari

Abstract Inspirational

4  

Deepti Tiwari

Abstract Inspirational

कस्तूरी

कस्तूरी

1 min
337

धूप छाव कि छाया में बचपन ने बचपन बदले,

कस्तूरी गंध लिए नाभ में मृग कितने वन बदले।

मन मोक्ष की लिए कामना तन कितने तन बदले है,

थके उम्र से कदमों ने अंतिम पग जीवन बदले हैं।

जंगल जंगल भटक रहे हैं हम सारे कस्तूरी लेकर!

हम कितना अध्याय भी पढ़ ले लेकिन 

हर अध्याय न होगा पूरा

सब कुछ बना नहीं सकते हम

रह जाएगा काम अधूरा ।

खुद पर लाद घूम रहे हैं सारे काम जरूरी लेकर,

जंगल जंगल भटक रहे हैं हम सारे कस्तूरी लेकर!

हर अनुपस्थिति को हम खुद से 

कभी भी पूरा कर सकते 

किसी मोड़ पर रुक जायेंगे

पांव हमारे थकते थकते 

चुप हो जाएगी दो आंखें अनबोली 

मजबूरी लेकर 

जंगल जंगल भटक रहे हैं हम सारे कस्तूरी लेकर!

हर यात्री पहुंचे मंजिल तक 

ऐसा कही विधान नहीं है

जबकि सभी को ज्ञात कि मंजिल 

तक जाना आसान नहीं

चाहे साथ रहो यात्रा में चाहे चल लो दूरी लेकर 

जंगल जंगल भटक रहे हैं हम सारे कस्तूरी ले कर!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract