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Deepti Tiwari

Abstract Drama Inspirational

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Deepti Tiwari

Abstract Drama Inspirational

लड़की

लड़की

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अगर तुम भी होते लड़की तो मैं तुमको बतलाती,

साज शृंगार ही नहीं है इसमें जो तुम भी इतराती,

झुका कर नज़रे तुम चलती जब 

अपने ही घर में  तुम,

तो मैं तुमको बतलाती क्या होता है लड़की का होना,

ढीले कपड़े ढककर मुंह रसोई में बिताती,

खाते ही बस एक निवाला मां जब ताने मारती,

कहा गई थी क्यों हुई तुम्हे देर ,

बस छूट गई थी मां मेरी मैं उसमें ना चढ़ पाई,

दूजे में चढ़ने गई तो पीछे से एक हाथ अजनबी सीने पर आ लगा था,

बस मां उस बस को भी मुझे इसीलिए छोड़ना पड़ा,

अगर तुम भी होती लड़की..............।

मां की आंखों ने न जाने क्या इशारों में कहा,

मैं अंदर कमरे में बस यही सोचती रहती हूं 

तुम भी होते लड़की तो जान पाते दर्द हमारा,

मां ने नया फ़रमान सुनाया कर दो जल्दी ब्याह इसका वरना नाक करवाएगी,

भाई भगा लाया दूसरे गांव की लड़की ,

पापा ने मूछों पर ताव मारा था,

जन्म लेती पिता के घर जाती अपने पिया के घर,

पिता पिया के घर के बीच नहीं रहा है अब मेरा घर,

घुट घुट कर जीती हु मैं आखिरी सांस लेने तक,

फिर याद आएगा वही समय,

जब ना थी फिक्र जरा भी ,                                अगर ना होती लड़की तुम शान से जीने पाती,

खूब पढ़ती लिखती मैं भी भैया के संग कंधे से कंधा मिलाती,

शीटीया बजाते छेड़ते लड़के  लड़कियों को,

नुक्कड़ मे झुंड बनाकर भुक्कड़ सी नजरो से रोज़,

बंद करो अब ये तमाशा बहुत हुआ,

मां अब तुम भी तो समझो बेटियां नहीं है बोझ तुम्हारा,

जब तक मैं थी हमेशा हाथ बताया है ,

मेरे रहते थकान को तुम कहा जान पाती थीं,

अब हूं पराई मायके और ससुराल में भी,

कौन पूछता है अब मुझको ,

स्वयं की खोज मैं निकली हू खुद को ढूंढ ही लूंगी एक दिन ,

जीवन नही है इतना छोटा की तुम सब सह लोगी,

तुम भी समझो ओ मेरे दोनो जहां तुम्हारे घर को मैने संवारा है,

करो बहु बेटियों का सम्मान सभी,

उसका अपमान श्री हरि को भी कहा भाया है,





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