लड़की
लड़की
अगर तुम भी होते लड़की तो मैं तुमको बतलाती,
साज शृंगार ही नहीं है इसमें जो तुम भी इतराती,
झुका कर नज़रे तुम चलती
अपने ही घर में जब तुम,
तो मैं तुमको बतलाती क्या होता है लड़की का होना,
ढीले कपड़े ढककर मुंह रसोई में बिताती,
खाते ही बस एक निवाला मां पर ताने मारती,
अगर तुम भी होती लड़की..............।
जन्म लेती पिता के घर जाती अपने पिया के घर,
पिता पिया के घर के बीच नहीं रहा है तेरा घर,
घुट घुट कर जीती तुम आखिरी सांस लेने तक,
फिर याद आएगा वही अल्हड़ बचपना,
ना होती फिक्र जरा भी अगर ना होती लड़की तुम।।
शीटीया बजाते छेड़ते लड़कियां रोज,
नुक्कड़ मे झुंड बनाकर भुक्कड़ सी नजरो से रोज़,
बंद करो अब ये तमाशा बहुत हुआ,
मां बहनों का सम्मान करो ना उनका अब तुम अपमान करो,
जीवन जो तुमको देती अब ना उसका अपमान करो