आस
आस
आज फिर तुम खोए खोए से लगते हो,
नींद नही है आंखों में पर सोए सोए से लगते हो,
क्यों इन छोटे छोटे कमरों में जीवन को सिकोड़े बैठे हो,
चंद पैसे कमाने के चक्कर में जो अनमोल समय को गवाया हैं,
छोड़ दो तुम ये सब मां ने तुम्हें बुलाया है,
तनख्वाह ने जो तुम्हारे तन को यूं खाया है,
आधी रोटी खाकर जो तुमने रात दिन बिताया है,
मिले हुए पैसे को तुम सीधे गांव भिजवाते हो,
पूछूं तो कहते हो मैं बड़े मजे रहता हूं,
मां से भी झूठ सच्चाई से जो कह जाते हो,
पर मां सब जानती है ...........
सच ही तो हैं मां सब जानती है।
चाहे हो दिवाली या तुम्हारे जन्मदिन का अवसर ,तुमने नए कपड़े कब लिए थे , यह भी वही हिसाब लगाती है।
रोती है माँ तुम्हे याद कर ,
निराश न होना तुम कभी समय थोड़ा कमज़ोर सही,
ख़ुद का ध्यान हमेशा रखना तुम कभी निराश न होना तुम ,
दूर बहुत हू तुमसे मैं,
पर पास हमेशा समझना तुम,
निराश कभी ना होना तुम ,
जब भी थक जाओ मां के गोद मे सिर रख कर सो जाना तुम,
दुनियां की इस भीड़ में कहीं न खो जाना तुम
मां के आंख के तारे हो तुम ,
इस जीवन की सांस बनाए रखना , हमारे जीवन की आस बनाएं रखना।।
दीप्ति तिवारी
