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ritesh deo

Abstract

4  

ritesh deo

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जरूरी नहीं

जरूरी नहीं

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जरूरी नहीं है,

मेरे मन को समझना,

मेरी कहीं बातों को छोड़,

अनकही बातों को सुनना, 

मेरे चेहरे के भाव देख ,

मेरे अंतर्मन को समझना ,

जरूरी नहीं है ,

मुझे समझना जरूरी नहीं है।।


कभी पन्ने में लिखा ,

कभी यादों में उतारा,

कभी दीवारों में लिख,

खुद को मिटाया,

मैंने खुद को गिरा,

गैरों को उठाया,

जरूरी नहीं है,

मेरे भीतर के सवालों का उठना,


देर रात जगना,

उल्लू सा उठना,

रिश्तों में पड़ना ,

उसमें उलझना,

रिश्तों की चोट खाकर,

उनसे ही डरना,

जरूरी नहीं है, 

मेरे किरदार में उलझना।।


हर रोज देखूं,

बस एक बात सोचूं,

आज नई सुबह होगी,

कोई तो बात होगी,

शाम गुजरेगी ये ,

और बहार होगी,

जरूरी नहीं है ,

मेरी आँसुओं से बात होगी।।


आँखों में मेरी देखना,

कभी तुम्हारी झलक की आस होगी,

तुम खुद को ना पाना जिस दिन,

वही दिन मेरी आखिरी रात होगी,

तुम समझे कभी तो मान लेना, महफ़िल में

गैरों से ज्यादा तुम्हारी हर रोज बात होगी।

जरूरी नहीं है,

तुम साथ दो मेरा हर दफा, यकीन हर बार सिर्फ तेरी बात होगी।।


जरूरी नहीं मुझको समझना ,

जरूरी नहीं मेरी बात करना।।



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