इंसान भाग रहा
इंसान भाग रहा
आज निकला मै घर से देख
नजारा बाहर का हंस दिया
हर कोई दोड़ रहा था जाने
कंहा जाने की होड़ थी कि सुकून खो दिया
रात दिन भाग रहा इंसान
पैसे कमाने जाग रहा इंसान
रिश्ते भूल कर लोभी हो रहा इंसान
मानवता नजर ना आती
आत्मा को भरे बाजार बेच रहा इंसान
औरत जिस्म बेच रही ले नाम मजबूरी का
मर्द ईमान बेच रहा ले कर नाम जिम्मेदारी का
हर कोई कुछ बेच रहा देख देख कर मैं रो दिया
वाह रे इंसान पैसा खूब कमा लिया
चैन सुकून पर तुमने खो दिया
पिता को पुत्र से बात करने की फुर्सत नही
माता को पिता के आने जाने की खबर नही
बेटी कहां किस के साथ सो रही
बेटा जाने किस का कर रहा चीर हरण
रिश्ते लगा दिये दांव पर सब कुछ खो दिया
इंसान मूर्ख बन अमीर हो रहा
पैसे के नीचे दब कर सब कुछ इंसान ने खो दिया।