अच्छा समय
अच्छा समय
बचपन में मैं स्कूल भीड़ से अलग ही जाया करता था,
हाथ में थैला, मौज मस्ती करते हुए पैदल ही जाना भाया करता था,
बेटा स्कूल से कहीं और चला ना जाएगा यह ख्याल,
मेरे मां-बाप को आया ही ना करता था,
हो जाएगी कोई उंच नीच यह ख्याल उन्हें सताया ही ना करता था,
गलत संगत में पड़ जाएगा बेटा,
बहलाकर कोई साथ ले जाएगा बेटा,
यह सब डर मेरे मां-बाप को सताया ही ना करता था,
नहीं थी स्कूल बस,
ना ही कोई महंगी किताबें,
ना ही फिश का बोझ सताया करता था,
हर मां-बाप पढ़ा सके अपने बच्चें को
इसी सोच के साथ स्कूल फीस का बोझ निर्धारित किया जाता था,
हमारे समय के भी बच्चे पढ़ कर ऊंची ऊंची नौकरी प्राप्त करते थे,
तब कहां कोई नेता किसी नौकरी के लिए अपनी पर्सनल अप्रोच किया करता था ?
धीरे-धीरे आया बदलाव इतना,
चपरासी की नौकरी में भी मंत्री का पत्र आया करता था,
स्कूल फीस ने छू लिया आसमान,
स्कूल फीस देने में मां-बाप का दम निकल जाया करता था,
दे कर इतनी फीस भी बच्चें को भेजो ट्यूशन ऐसा प्रेशर बनाया जाया करता था,
यह कैसी शिक्षा, यह कैसे संस्कार है भाई
जहां भाई को भाई से लड़ाया जाया करता था,
समय की आपाधापी में खोया इंसान इतना,
की अच्छा समय अब तो सिर्फ सपने में ही आया करता था।