इंसान का साथ
इंसान का साथ
यही तो इंसान समझ नहीं पाता है ...
पैसे की कदर करता है और इंसान का मोल लगाता है. ...
ये इंसान खुद को खुद से ठगाता है..
इलजाम हालात पर लगाता है. ..
बाप अपने बेटे पर और बेटा अपने बाप पर दांव लगाता है. ..
तभी तो आखिरी वक्त में अकेला रह जाता है. ..
ना पैसा, ना संगी साथी कोई जाता है. ..
बनता है दुल्हा तो जमाना आगे हो जाता है. ..
हो अंतिम यात्रा तो हर कोई पिछे क्यों रह जाता है. .
साथ में जीवन और मरण की कसम खाने वाला रिश्ता भी साथ नहीं आता है. .
फिर भी इंसान जीते जी कर्म नहीं पैसा कमाता है. ..
इंसान करता है कर्म और कर्म ही कमाता है...
पिछले जन्म के कर्म साथ लाता है. ..
इस जन्म के कर्म साथ ले जाता है. ...
यही सत्य है यही सत्य था यही सत्य रह जाता है ।।