पतिव्रता नारी
पतिव्रता नारी
पिछले कुछ दिनों में
मैं कुछ स्त्रियों से मिली
अपनी - अपनी जिम्मेदारी समझ
वे सब सिखाना चाहती थीं मुझे
सच्ची गृहस्थिन के गुुण
पतिव्रता नारी का धर्म
सती - सावित्री बनने की कला
उनमें से सबसे बूढी़ स्त्री बोली
कैसे उसके 26 वर्ष के पुरूष ने
12 वर्ष की उस स्त्री (बच्ची) के
बदन को नौंचा था पहली रात
दर्द से चीखी थी बहुत तेज
आंगन में सो रही घर की बडी़ स्त्रियों से
सबेरे ही पडी़ थी भर - भर के डांट
उसके बाद कभी नहीं
हां ! कभी नहीं
निकली थी उसकी चीख
दूसरी स्त्री उतावली सी बोल पडी़
एक दिन उसके पुरूष ने बहुत मारा था
जब समय से खेत पर खाना ले
नहीं पहुंच सकी थी वो
आस - पास के खेतों में
काम कर रहे किसानों ने
बमुश्किल बचाये थे उसके प्राण
उसके बाद हमेशा पहुंची वो
समय से बहुत पहले
तीसरी स्त्री ने लम्बी सांस लेते हुये कहा
कैसे उस पर उलीची गई थी
चूल्हे की गर्म -गर्म राख
बिना पूछे बेचकर
एक बोरी अनाज
खरीदी थी उसने एक बनारसी साडी़
उसके बाद आज तक उसने
एक लत्ता भी अपने मन का न लिया
वही पहना जो उसका पुरूष ले आया
चौथी स्त्री भी आह भरकर बोली
एक दफा काली आधी रात में
गांव की कच्ची सड़क पर
छोड़ गया था उसका पुरूष
शादी के कुछ महीने बाद ही
किसी बात पर
चल गई थी उसकी जुबान
मायके वाले समझा बुझाकर
पहुंचा आये थे ससुराल
काटकर उसकी जुबान
तब से वह उतना ही बोली
जितना उसके पुरूष ने कहा
पांचवी स्त्री जरा सा आगे सरक बोली
उसका पुरुष तो सबसे आगे निकला
ले आया उसके लिए सौत
कुछ ही सालों बाद
बंजर जमीन जो थी
उगा न सकी कोई पौधा
अपने ही घर में बनकर दासी
गुजारी है उसने उम्र
पाले हैं बालक उसके
जिसने छीना है उसका अधिकार
छठी स्त्री
सातवीं स्त्री
बाकी की सभी स्त्रियां
कर रहीं थी अपनी बारी का इन्तजार
वे कुछ बोलें उससे पहले मैंने रख लिये
अपने कानों पर हाथ
मैंने महसूस किया मेरे कानों और
आंखों से बह निकला है खून
मैं भाग उठी ये कहते हुये
मुझे नहीं बनना सती सावित्री
मुझे नहीं सीखने सच्ची गृहस्थिन के गुण
मुझे नहीं बनना पतिव्रता नारी
नहीं, नहीं बिल्कुल भी नहीं
ऐसे तो बिल्कुल नहीं.........
