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Radha Gupta Patwari

Tragedy

4.5  

Radha Gupta Patwari

Tragedy

जलता हुआ प्यार

जलता हुआ प्यार

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ख्वाहिश थी मेरी आसमां सारा छूने की,

पर तुमने रौंदने की कोशिश तमाम की।


माँ की लाड़ली पिता की दुलारी थी,

भाई की छुटकी तो बहना की सहेली थी।


एक रोज में कॉलेज जाने निकली थी,

साथ सहेलियाँ की मस्त मौला टोली थी।


तुम उस रोज भी मेरा पीछा करते रहे।

क्यों प्यार का झूठा दिखावा करते रहे।।


रोक सड़क बीचों-बीच तुम खड़े हो गये।

जबरदस्ती प्यार पेश कर गले लग गये।।


तुम्हारा यूँ बेबज़ह मेरे गले से पड़ना।

सहज नहीं था ये मेरे लिए समझना।।


वो राह में चलते राहगीर नहीं थे मात्र।

कोई अंकल तो कोई था पड़ोसी पुत्र।।


पवित्र प्यार तो दोनों तरफ का होता है।

एक तरफा मात्र आकर्षण ही होता है।।


बीच राह में असहज शर्मिंदगी भर उठी।

नहीं सह पाई और अपने को छुड़ा बैठी।।


जड़ दिया एक जोरदार का तमाचा तुम्हें।

कह दिया दूर रह अगर दुबारा छुआ हमें।


पुलिस को बुला जेल की हवा खिलवाऊँगी।

लगा मुझे अब मैं निडर यहाँ रह पाऊँगी।।


अपना सरेआम अपमान होता देख तुम।

देख लूँगा धमकी देकर चले गये तुम।।


एक रोज अकेले कॉलेज से घर आ रही थी।

उस दिन पास होने की खुशी चेहरे पर थी।।


कुछ भविष्य के सपने संजोए जा रही थी।

पापा-मम्मी की ख्वाहिश पूरी हो रही थी।।


अचानक एक बाइक तेजी से सामने आती। ।

जब तक मैं कुछ समझ और होश में आती।।


फेंक मेरे चेहरे पर वह जहर भरी प्याली।

कुछ जलन,दर्द,खून,के साथ चीख निकली।


तुम दूर हँस रहे थे और लोग मुझे देख रहे थे।

शायद यूँ मुझे तड़पता देख मुझे कोस रहे थे।


मैं बदबहास सी मदद की गुहार करती रही।

दुनिया मुझे जला देख नजरअंदाज करती रही।।


होश आया तो खुद को अस्पताल में लेटा पाया।

चेहरे पर पट्टियों से बंधा जकड़ा लाचार पाया।।


जब चेहरा देखा तो खुद ही होश खो बैठी।

जिंदगी में बचा क्या अब यह सोच रो बैठी।।


माना मेरा प्यार तो तुमसे कभी था ही नहीं।

पर तुम तो मुझसे बेइंतहा प्यार करते थे सही।।


मैं तो प्यार निभा न सकी पर तुम ही निभा देते।

प्यार धीरे धीरे ही सही मेरे दिल में भी जगा देते।।


माँ पिता ने सिर हाथ फेर भाई-बहन ने गले लगाया।

जिंदगी एक बार मिली यूँ न गंवाओ ये समझाया।।


मैं दृढ़ हौंसला कर फिर हिम्मत से खड़ी हो उठी।

जीवन को नई परिभाषा गढ़ आगे चल उठी।।


सलाखों के पीछे तुम काट रहे हो जीवन आज।

अब यह सतरंगी दुनिया करती मुझ पर नाज।।



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