पूछता है तिरंगा
पूछता है तिरंगा
प्रश्न अनेक हैं, पर उत्तर नज़र नहीं आता है
अब तिरंगे को देख देख मन उदास हो जाता है।
पूछता है तिरंगा,
पूछता है तिरंगा,
की क्या अब दिन बदलने को है?
मेरे रंगों की जगह किसी और रंगों को
चढने को है,
क्या मैं विराम लूँ,
किसी और की पताका,
ऊँचा और उड़ने को है?
सिमट कर रख लो
अपने पास,
शायद किसी के मंसूबे
मुझे रौंदने के है?
क्रोधित हूँ मैं, परेशान भी।
कोई हल ना समझ में आता है।
किसी की बेवकूफी से,
ये बसंत इक काला दिन बन जाता है।
